18 जून को श्री सुदर्शन प्रेरणा नामक संस्था ने रायपुर में सर्वोच्च न्यायालय के लोकप्रिय अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का व्याख्यान रखा था.ये आजकल काफी चर्चित हो गए है. ख़ास के अपनी जनहित याचिकाओं को लेकर। चाहे बाबा विश्वनाथ के मामले में हो या धर्मांतरण को लेकर। टीवी चैनलों में इनको सुनते हुए संतोष होता है कि कोई तो है, जो सनातन मुद्दों को लेकर लड़ रहा है. रायपुर में इनके व्याख्यान का विषय था, रामराज्य और भारतीय संविधान . इनके व्याख्यान को सुनते हुए मेरी तरह शायद सभी ने महसूस किया होगा कि हम बेशक आजदी का अमृत महोत्सव मना चुके है, लेकिन सही मायने में भारत का अपना संविधान कहाँ लागू कर सके हैं? आज भी हम दुनिया के कुछ देशो के संविधान की जूठन ही तो चाट रहे हैं. मैकाले नामक अंग्रेज ने अपनी शिक्षा नीति इस देश पर थोप कर इस देश को बर्बाद किया, हम आज़ादी के बाद उस नीति पर ही चलते रहे यानी अँग्रेज़ी हमारे जीवन का हिस्सा बनी रही। मैकाले ने भारतीय दंड संहिता (सन 1860 ) बनाई, यह देश आज़ादी के बाद से उसी संहिता को आत्मसात करके चल रहा है. एक भी धारा न कम हुई, न बढ़ी। सोचिए, हम ऐसे देश में रह रहे हैं जो गुलाम होकर आज़ाद होने के बावजूद उन्ही धाराओं के आधार पर चल रहा है, जो धाराएं आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे क्रांतिकारियों के दमन के लिए बनाई गई थी. उसी का तो दुष्परिणाम है कि आज भी आज़ाद भारत में जब प्रदर्शनकारियों का दमन करना होता है, तो मैकाले की धाराओं का इस्तेमाल करके आंदोलनकारियों को जेल भेज दिया जाता है। धारा 144 क्या है पांच लोग एक साथ एकत्र नहीं हो सकते, वरना कड़ी कारऱ्वाई की जाएगी। पहले भी की जाती रही और आज भी की जाती रही। आज़ाद भारत में लोग प्रदर्शन नहीं कर सकते। किसी मुख्यमंत्री या मंत्री के घर का घेराव नहीं कर सकते , सड़क जाम कर दी जाती है। जुलूस नि निकालने वालो पर लाठी चार्ज होता है. आज़ाद देश में कभी-कभी गोली भी दागी जाती है। यह सब देख कर मेरे जैसा व्यक्ति सोचने पर बाध्य होता है कि यह कैसे आज़ादी ? और कहाँ है रामराज्य ? यह तो केवल एक आदर्श कल्पना भर है, जो कभी साकार नहीं हो सकती इसलिए कि हमारे जनप्रतिनिधि खुद नहीं चाहते कि रामराज्य आए. सरकार किसी भी दल की हो, सबका चरित्र एक जैसा है। सब चोर चोर मौसेरे भाई की तरह है। ऐसा लगता है, हमारी राजनीतिक पार्टियों का आपस में मौन अनुबंध है की पाँच साल तुम जीमो और उसके बाद हम जीमेंगे। देश की जनता को अच्छे से ठग सकेगा, वह राज करेगा, चाहे केंद्र में या राज्यों में. यही कारण है की जो भी सरकार विराजमान होती है वह मैकाले की दंड संहिता नहीं बदलती, उसे लोकतांत्रिक नहीं करती। लोग आखिर सड़कों पर उत्तर कर प्रदर्शन क्यों नहीं कर सकते? इसके लिए पुलिस की अनुमति की ज़रूरत क्यों? पुलिस को केवल सूचना देनी चाहिए, अनुमति किस बात की? उसके बाद उसका काम है कि वह कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जुलूस के साथ रहे. इसलिए यह आवश्यक है कि आज़ाद देश के हिसाब से धारा 144 में परिवर्तन हो और उसमे अनुमति की जगह सूचना मात्र देने का प्रावधान किया जाए. जितने भी लोग चाहें, प्रदर्शन कर सकते है. लेकिन शर्त यही रहे कि वे शांतिपूर्वक प्रदर्शन करे। प्रदर्शन जनता का बुनियादी अधिकार है, लेकिन उनका कर्तव्य है कि वह शांतिपूर्ण भी रहे. अधिकार और कर्तव्य में संतुलन बना रहेगा, तभी कहा जाएगा कि यह रामराज्य है. अब समय आ गया है हम अपने संविधान का भारतीयकरण करें। हमारे प्राचीन ग्रंथों में अनेक महत्वपूर्ण व्यवस्थाएँ दी गई हैं. उसके अनुरूप व्यवस्था बने. नई शिक्षा नीति में भारतीयता की झलक दिखती है, लेकिन उसमे भी अभी काफी गुंजाइश है। यह विषय बहुत विस्तार की मांग करता है. भविष्य में इस पर और लिखूंगा। फिलहाल तो इतना ही