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जहरीले लोग!

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जहर केवल साँपों में नहीं होता। कुछ मनुष्यों के भीतर भी भरा होता है। मगर वे समझ नहीं पाते कि यह ज़हर है। पहले लोग अपनी कुंठा कहीं उगल नहीं पाते थे। लेकिन उनकी निराशा, हताशा, कुंठा को उगलने का एक माध्यम उपलब्ध हो गया है, जिसे वे फेसबुक कहते हैं। या सोशल मीडिया। कुछ के लिए फेसबुक मानवता को आगे बढ़ाने का माध्यम है। कोई धर्म, जाति, संप्रदाय कैसे मिलजुल कर रहे, इस की कोशिश में रचनात्मक टिप्पणियां करते रहते हैं, महापुरुषों के वचन भी कुछ लोग पोस्ट करते हैं। अनेक बन्धुओं की बातें सकारात्मक बोध से भरी होती हैं। लेकिन कुछ लोगों को टिप्पणियां हमेशा नकारात्मक नजर आती है। मैं समझ पाता कि उनमें इतनी नकारात्मक कैसे आ गई? क्या इसलिए कि जिस कार्यालय में वे काम कर रहे हैं, वहॉं काम का दबाव अधिक है, या उनका अधिकारी उनको हर वक्त फटकारता रहता है? या पत्नी से झगड़ा होता रहता है। जो भी, मगर जैसे ही वे फेसबुक खोलते हैं, दिन भर की सारी कुंठाएं यही उतार देते हैं। उनकी बातों से लगता है कि वे विश्व के महानतम क्रांतिकारी हैं। जबकि उनका जीवन हम देखते हैं, तो पता चलता है कि वे किसी बड़े भ्रांतिकारी से कम नहीं। बेहद डरपोक,कायर, बॉस के आगे दुम हिलाने वाले।
अगर आप कोई भली बात भी कह दी तोये क्रांति बनाम भ्रान्तिकारी आपका समर्थन नहीं करेंगे, उल्टे कुछ ऐसा कहेंगे, गोया आपने बहुत ही गंदी बात कह दी । मान लो आपने लिख दिया कि गौ मांस नहीं खाना चाहिए, गौ हत्या बुरी बात है। मांसाहार स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं, बस देखिए, आपकी कैसी फजीहत करेंगे। कुछ अच्छी टिप्पणियों से आपके विचार स्वागत होगा कि आपने बड़ी अच्छी बात कही। लेकिन कुछ खास पंथ के पथिक आप पर पिल पड़ेंगे। बहुत चलताऊ जुमला पेश करेंगे कि कोई क्या खाए, क्या पहने, इससे आपको क्या लेना देना। कोई कहेगा आप सांप्रदायिकता फैला रहे हैं। मैं समझ नहीं पाता कि मांसाहार से रोकने की बात करना कहा की सांप्रदायिकता है ।गाय तो विश्व की माता कही जाती है ।उसकी हत्या का विरोध करना कैसे हो गई सांप्रदायिकता? क्या गाय को काटना किसी संप्रदाय विशेष का धार्मिक अनुष्ठान है? अगर यह धार्मिक अनुष्ठान है, तो ऐसे धर्म के बारे में हमें सोचना चाहिए,जो हिंसा की वकालत करता है। मैं समझता हूं दुनिया का कोई भी धर्म कभी भी हिंसा की बात नहीं करेगा। वह हर मनुष्य के भीतर करुणा, सद्भाव, प्रेम, भाईचारे की भावना जगाने की ही बात करेगा। अगर किसी धर्म में अलगाववाद है, वह हिंसा के लिए प्रेरित करता है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता। कभी आपने भूल से भी प्रधानमंत्री की तारीफ कर दी कि देखिए उनके कारण दुनिया में भारत का कितना नाम रोशन हो रहा है, कोई राष्ट्राध्यक्ष उनके पैर छू रहा है, कोई उनको बॉस कह रहा है तो लगी मिर्ची। पडऩे लगी गाली। जो दूसरी विचारधारा के हैं, चिढ़ जाएंगे और बोलेंगे, प्रधानमंत्री ने अँग्रेज़ी के एक शब्द का गलत उच्चारण किया था, या भीड़ प्रायोजित थी। ये दो उदाहरण दिए हैं। कुण्ठा ग्रस्त आदमी केवल गाली देगा। विरोध करते हुए बड़ी गंदी और कड़वी बातें कहेगा। लिखने में संकोच नहीं करेगा। ऐसे नकारात्मक बोध वाले बढ़ते जा रहे हैं। तब मुझे कहना पड़ता है ,
बात मोहब्बत की कुछ करते,
कुछ बस घृणा बढ़ाते हैं।
जिसके जीवन में जो है,
वो लोगों तक पहुँचाते हैं।