नई शिक्षा नीति कमाल की है। उसे मैंने ध्यान से देखा तो पाया इसने जड़ता को तोडऩे की कोशिश की है। बाल मन के अनुरूप शिक्षा दी जाए, इस भाव से नीति तैयार की गई है। अगर इसे ईमानदारी से लागू कर दिया जाए, तो नि:संदेह इस देश की नई पीढ़ी को लाभ मिलेगा और देश भी आगे बढ़ेगा। अब नई शिक्षा नीति में उदारता नजऱ आती है। विज्ञान का विद्यार्थी अब कला के विषय का ज्ञान भी अर्जित कर सकता है। विज्ञान पढ़ते हुए उसे लगता है, कि उसे संगीत भी सीखना चाहिए तो वह संगीत की पढाई भी कर सकता है। पहले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी. विद्यार्थी मूल पढ़ाई के साथ साथ योग, खेल, संगीत, फैशन डिज़ाइननिंग, मूर्तिकला, चित्रकला, नृत्य आदि की शिक्षा भी ले सकता है। इतनी उदारता के साथ नीति बनाई गई है। बच्चा देश-विदेश की मनचाही भाषा सीख सकता है। बागवानी, से लेकर लकड़ी का काम, मिट्टी के बर्तन बनाना, बिजली का काम इत्यादि भी वह अपनी रूचि के अनुसार सीख सकता है। यह एक तरह से वोकेशनल प्रशिक्षण है, यानी वह ऐसी पढाई भी कर सकता है, जो उसे तत्काल रोजगार प्रदान कर सकती है। इस दृष्टि से नई शिक्षा नीति क्रांतिकारी कदम है. सबसे महत्वपूर्ण बात मुझे लगी कि विद्यार्थी साइंस पढ़ते हुए संगीत भी सीख सकता है। संगीत की संगत जो करे, उसके जीवन की रंगत बदल सकती है। संगीत जड़ किसम के पाठ्यक्रमों को सरस् बना सकता है। मानसिक थकान को दूर भगाने के लिए संगीत से बेहतर कोई दूसरी दवा नहीं है , संगीत को लेकर मैंने काव्यात्मक तरीके से लिखा है, वह कुछ इस प्रकार है। देखें : ”मन में जो उमंग भर जाता, झरने-सा जो रस बरसाता। जो थकान को दूर भगाता,हम सबके मन को बहलाता। जीवन सबका श्रेष्ठ बनाए, जो अंतस झंकृत कर जाए। उसको कहते हैं संगीत, वो है सब के मन का मीत।।…इसकी संगत में जो आए, रंगत उसकी बदली जाए । मीत बने संगीत अगर तो, जीवन बोझ नहीं लग पाए । जो भटके को राह दिखाए, सही दिशा हमको बतला। उसको कहते हैं संगीत।वो है सब के मन का मीत।।..जो संगीत से करते प्यार,उनका उत्तम हो व्यवहार। उनका तो सारा संसार, टूटे नफरत के दीवार। जीवन को जो सफल बनाए, नर को नारायण कर जाए। उसको कहते हैं संगीत।।…संस्कार जिसमें है सुंदर, ज्ञान हमेशा जो दे बेहतर। ईश्वर के नो पास बिठाए, तरुण हमेशा हृदय बनाए। ध्यान कभी जो ना भटकाए, जो साधक-सा हमें बनाए । उसको कहते हैं संगीत। वो है सब के मन का मीत।।…जो बच्चे संगीत पढ़ेंगे, अपना जीवन आप गढ़ेंगे। राग हमें अनुराग सिखाए, हम तेजी से और बढ़ेंगे। बुद्धिमान जो हमें बनाए, हमें और आगे ले जाए। उसको कहते हैं संगीत।वो है सब के मन का मीत।
संगीत की उपादेयता का अनुभव हम प्रतिदिन करते हैं. बिना संगीत के हम जीवन नहीं जी सकते। अब तो नई पीढ़ी के युवा कान में फोन लगाए या भी करते हैं, अपना काम भी करते हैं, साथ में संगीत भी सुनते रहते हैं. संगीत हमारे कार्य की क्षमता को बढ़ा देता है। हमने वह तस्वीर ज़रूर देखी होगी, जिसमे भगवान् कृष्ण बांसुरी बजा रहे हैं और गायें, घास चर रही हैं। गाय को संगीत बहुत प्रिय है। अनेक गौ शालाओं में संगीत की मधुर स्वर लहरियां गूँजती रहती हैं , जिनको सुनकर गौ माता मगन हो जाती है, और अधिक दूध देती है। गाय को हम पशु कहते हैं मगर उसमे संगीत की समझ है, फिर हम तो मनुष्य है, हममे क्या संगीत के प्रति कोई अनुराग नहीं ही सकता ? ज़रूर होगा, बशर्ते माता-पिता बच्चो का बचपन से ही संगीत से जोड़े. अभी दो दिन पहले एक तबला वादक बच्चे के बारे में मैंने पढ़ा। उसका नाम गिनीज बुक में हैं. अभी वह मात्र बारह साल का है। वह दो साल की उम्र से ही तबला सीखता रहा और आज सैकड़ों जगह उसने शानदार प्रस्तुतियाँ दी है। अनेक बच्चे गिटार, हारमोनियम, सितार, ढोलक बजाने से लेकर गायन में निपुण हो रहे है। संगीत, नृत्य से जुड़ कर बच्चो (बच्चियों में) विशेष प्रतिभा पनपती है. वे पढाई में भी होशियार निकलते हैं (निकलती हैं )। यह सब सोच कर नई शिक्षा नीति में संगीत को ऐच्छिक नहीं, अनिवार्य किया गया है। यह अच्छी पहल है। ऐसा होने से बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़ेंगे. संगीत के क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। नए सांस्कृतिक भारत के निर्माण में नई शिक्षा नीति मील का पत्थर बनेगी, ऐसा विश्वास है।