गीत हो या के गजल हो दोस्तो
बात सीधी हो सरल हो दोस्तो
पिछले दिनों उज्जैन में एक सम्वाद शाला में मुझे सरल, रंजक लेखन विषय पर बोलना था। सीधी सरल रेखा खींचना बहुत कठिन है। उसके लिए बहुत एकाग्रता चाहिए । आड़ी तिरछी रेखा कैसे भी खींच सकते हैं। सरल रेखा खींचने के लिए हमें स्केल का सहारा लेना पड़ता है उसी तरह लिखने के लिए हमें स्किल का सहारा लेना पड़ता है। यानी कौशल ।अपना कौशल बनाना पड़ेगा । कौशल कब बढ़ेगा यह सोचकर तो नहीं बड़ेगा कि हमारा कौशल बढ़ानाहै । कौशल बढ़ जाए। उसके लिए हमें सतत अध्ययन करना पड़ेगा ।अपनी परंपरा का, अपनी संस्कृति का ,अपने प्राचीनतम सद्ग्रन्थों का। रामचरितमानस में तुलसीदास ने कहा है न बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिन सुलभ न सोई। करत करत अभ्यास के जड़मति हो सुजान ,रसरी आवत जात से सिल पर परत निशान। कोई भी रचना तब तक पठनीय नहीं बन सकती जब तक उसमें हम रंजकता का समावेश न करें। कहीं लोकोक्ति आ जाए कहीं कोई विनोद का प्रसंग आ जाए। जैसे हम छुआछूत जाति प्रथा पर लिख रहे हैं तो उससे संबंध में कुछ उदाहरण हो सकते हैं। छुआछूत का सबसे सुंदर उदाहरण हम भगत सिंह का दे सकते हैं । वे जब जेल में बंद थे तो उनके मल मूत्र की सफाई करने के लिए एक व्यक्ति आता था ।उसका नाम था बोधा। भगत सिंह उसे बेबे कह कर बुलाए करते थे । बेबे पंजाबी में मां को कहते हैँ। एक बार भगतसिंह ने उससे कहा कि बेबे मुझे अपने हाथ का बनी रोटी खिलाओ। बोधा परेशान। बोला, नहीं मैं तो अछूत हूं आप ऊंची जाति के हैं। मैं आपको कैसे खाना खिलाया सकता हूं। लेकिन भगत सिंह ने कहा नहीं तुमको मुझे खाना खिलाना ही होगा। तुमको मैं बेबे कहता हूं। मां तो बचपन में मेरा मल मूत्र साफ क्या करती थी । तुम हमारा मलमूत्र साफ कर रहे हो, तो तुम तो मां की तरह बड़ा काम कर रहे हो। तुम्हें मुझे खाना खिलाना ही होगा। भगत सिंह की जिद के आगे बोधा की कुछ न चली और उसने भगत सिंह को अपने हाथों से खाना खिलाया ।यह उदाहरण अपने आप में छुआछूत को दूर भगाने के लिए हमेशा दिया जाना चाहिए। सब इसे अपने-अपने तरीके से लिख सकते हैं। हम रैदास को याद कर सकते हैं। जिन्होंने अपनी कठौतिया में गंगाजल को आहूत किया और गंगा वहाँ पहुंच गई । तभी तो कहावत बनी है मन चंगा तो कठौती में गंगा। मेरी पंक्तियां है, जिसका मन निर्मल होता है जीवन गंगा जल होता है मेहनत का साथ होगा यारों सदा सुनहरा कल होता है। निर्मल हृदय सरल लिख सकता है। कबीर ने कहा है,साधो सहज समाधि भली..। सरल दिखाने के लिए आपका जीवन भी ऐसा सरल होना चाहिए जैसा एक बच्चे का होता है निर्मल । हमारे लेखन में तत्सम नहीं, तद्भव शब्द अधिक आने चाहिए। तत्सम यानी संस्कृत के शब्द हम जस का तस अपने लेखन में डाल देंगे तो वह दूरह हो जाएंगे अगर तद्भव शब्दों को हम डालेंगे तो लोगों को आसानी होगी। कई बार हमारे कुछ मित्र विद्वता दिखाने के लिए संस्कृत के कठिन शब्दों का प्रयोग करते हैं इस कारण उनका लेख अपठनीय हो जाता है। जैसे एतदर्थ शब्द है उसकी जगह हम कह सकते हैं कि इसके अनुसार। सरल लेखन पठनीय और प्रभावी होता है। वह स्मृति में भी बस जाता है।