क्रिकेट हमारे देश में खुमार की तरह चलता है। क्रिकेट के प्रति प्रेम के चलते अभी हमने देखा कि एक दिवसीय विश्व कप मैच को देखने के लिए लोगों ने हजारों रुपये खर्च करके अहमदाबाद की यात्रा की। एक सज्जन बता रहे थे कि जब उन्होंने अपने भतीजे से पूछा कि अहमदाबाद तो जा रहे हो लेकिन वहां सारे होटल बुक हैं। रहने की कोई जगह नहीं मिलेगी, तो लड़के ने कहा, मुझे उसकी चिंता नहीं। मैं बीमारी का बहाना करके किसी अस्पताल में जाकर भर्ती हो जाऊँगा । तो यह जुनून है लोगों के मन में ! दुर्भाग्य की बात है कि ऐसा जुनून कभी फुटबॉल जैसे गतिशील खेल के लिए नहीं होता। आज भारत का नाम फुटबॉल के मामले में दुनिया में कहीं भी नहीं है। हमारी सरकारों ने कभी फुटबॉल को महत्व दिया ही नहीं। हर कोई क्रिकेट का दीवाना है यही कारण है कि जब ऑस्ट्रेलिया के साथ एक दिवसीय क्रिकेट के अंतिम मुकाबले में भारत पराजित हो गया तो ऐसा महसूस हुआ जैसे पता नहीं हमने क्या खो दिया है। कल तक जिन खिलाडिय़ों को हम सम्मान दे रहे थे, उन खिलाडिय़ों को गरियाने लगे। अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में फाइनल खेला जा रहा था, उसे देखने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे,तो उसको लेकर तरह-तरह की नकारात्मक बातें लोग करने लगे । गोया मोदी जी की उपस्थिति के कारण हार गए। खेल तो खेल होता है। दो टीम मैदान में उतरेगी, तो स्वाभाविक है कि कोई एक जीतेगी। और जो टीम जीतती है, नि:संदेह उसका खेल पराजित टीम से तो बेहतर होता ही है। 19 नवंबर के मैच को मैंने भी ध्यान से देखा। जब भारतीय टीम बैटिंग कर रही थी, तभी मुझे लगा था भारतीय टीम शायद हार जाएगी । टीम के कप्तान रोहित शर्मा जिस लापरवाह तरीके से खेल रहे थे, उसे देखकर मैंने अपने बेटे से कहा ही था कि देखना, थोड़ी देर बाद यह कैच आउट हो जाएगा। और कुछ देर बाद ही वह कैच आउट ही हुआ। इसके पहले रोहित तीन चार-बार उनके कैच आउट होते-होते बचा था। हमारी भारतीय टीम के बारे में हम सब ने महसूस किया है कि वह शुरुआती मैच तो जबरदस्त खेलती है, जीतती भी है, लेकिन फाइनल मैच में वह कुछ अतिरिक्त तनाव पाल लेती है। दबाव में आ जाती है। इसलिए जैसा खेल उसे खेलना चाहिए, वैसा खेल नहीं पातीम अहमदाबाद के मैच में भी ऐसा ही हुआ। जितने रन बनने चाहिए उससे काफी काम बने। प्राय: शतक जमाने वाले विराट कोहली भी कमाल नहीं दिखा सके। रोहित शर्मा भी। शुभमन गिल तो चार रन बना के पैवेलियन लौट गए। अगर भारतीय टीम 300 से ज्यादा रन बना लेती तो बहुत संभव है ऑस्ट्रेलिया की टीम को पराजित किया जा सकता था । हमारे बॉलरों ने शुरुआत में तो काफी अच्छा खेला। 47 रन तक आस्ट्रेलिया के तीन खिलाडिय़ों को उन्होंने आउट कर दिया। लेकिन लेकिन बाद में वे विफल रहे। ट्रेविस हेड को अंतत आउट नहीं कर पाए, जो मैन ऑफ द मैच बने। जिन्होंने शानदार बल्लेबाजी का प्रदर्शन करते हुए 137 रन बनाए। अगर हमारे गेंदबाज ट्रेविस् हेड को आउट कर देते तो बहुत संभव है, जीत का सेहरा भारतीय टीम के सर पर बंध जाता, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। खैर, खेल तो खेल होता है। ऑस्ट्रेलिया की टीम के दमदार खेल ने भारत को 6 विकेट से हरा दिया। छठी बार वह विश्व विजेता बनी। भारत केवल दो बार विश्व चैंपियन बन सका । 1983 में और 1911 में। बहरहाल, आने वाले समय में हम सब उम्मीद करते हैं कि हमारी टीम बेहतर प्रदर्शन करके विश्व विजेता बनेगी। यहां मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि जिस तरह से हम क्रिकेट के मोह में फंसे हुए हैं, और धीरे-धीरे इसे सटोरियों का भी खेल बना दिया गया, तब यह जरूरी है कि हम लोग फुटबॉल और हॉकी को भी खूब प्रोत्साहित करें। क्रिकेट खिलाडिय़ों पर तो बेहिसाब दौलत बरसती है, लेकिन फुटबॉल और हॉकी खिलाडिय़ों को बिल्कुल महत्व नहीं दिया जाता। अगर हम फुटबॉल खिलाडिय़ों को भी महत्व दें, तो उम्मीद करता हूँ कि आने वाले समय में हम भी विश्वस्तर के फुटबॉल खिलाड़ी दे सकते हैं। अंतत: कहूँगा कि एक दिवसीय विश्व कप 2023 के फाइनल में भारतीय टीम के पराजित होने पर एक भारतीय होने के नाते मुझे भी गहरा दुख है। लेकिन अपने ही दो शेरों से अपनी बात यहीं खत्म कर रहा हूँ कि
आपकी शुभकामनाएँ साथ हैं
क्या हुआ गर कुछ बलाएँ साथ है
हारने का अर्थ यह भी जानिए
जीत की संभावनाएँ साथ हैं।