Home मेरी बात संविधान का सही अनुपालन जरूरी

संविधान का सही अनुपालन जरूरी

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26 नवंबर को संविधान दिवस था। मोदी सरकार के आने के बाद यह दिवस 2015 से मनाया जाने लगा। इसी दिन सन 1949 को संविधान निर्मात्री समिति ने संविधान सभा को संपूर्ण संविधान सौंप दिया था। यह हस्तलिखित संविधान था, जिसे अंग्रेजी में बहुत सुंदर तरीके से लिखा था प्रेमबिहारी नारायण रायजादा ने। हिंदी में लिखने का कार्य वसंत कृष्ण वैद्य ने किया था। यह जानकारी लोगों को होनी चाहिए। संविधान 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ ।हमारे संविधान में अनेक देशों के श्रेष्ठतम तत्वों को समाहित किया गया है। यही कारण है कि इसे विश्व का सर्वश्रेष्ठ संविधान कहा जाता है। संविधान तो श्रेष्ठ है लेकिन दुर्भाग्य यह रहा है कि इसके अनुपालक श्रेष्ठता से दूर होते चले गए। नायक कब खलनायक हो गए, पता ही नहीं चला। संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्याय पालिका को बेहतर व्यवस्था संचालन का जिम्मा दिया लेकिन धीरे धीरे इनकी उदासीनता देश पर भारी पडऩे लगी। कानून निर्माण के मामले में बड़ी हड़बड़ी हुई । अंग्रेज़ों के समय के अनेक कानून जस के तस लागू कर दिए गए। जो कानून अंग्रेज़ों ने स्वतंत्रता सेनानियों के दमन करने के लिए बनाया था, वे कानून आज स्वतन्त्र नागरिकों के दमन हेतु उपयोग में लाए जा रहे हैं। यह दुखद स्थिति है। हालांकि मोदी सरकार ने कुछ अप्रासंगिक कानूनों को रद्द कर दिया है, फिर भी अभी वे सब कानून हटाए जाने चाहिए, जो नागरिकों के बुनियादी अधिकारों को बाधित करते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले पर आज भी हम देखते हैं, कि कानून का शिकंजा कस जाता है। अनेक पत्रकार सरकारों या सरकार में बैठे लोगों के विरुद्ध लिखने के कारण प्रताडि़त होते हैं। जेल भेज दिए जाते हैं। मेरा अपना मानना है कि केवल देश के विरुद्ध कुछ लिखे जाने पर ही राजद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। सत्ता में बैठे किसी भी शीर्ष व्यक्ति की नाम ले कर की गई निंदा पर कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। बेहद गम्भीर आरोप पर मानहानि का मुकदमा दर्ज हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ किसी की मानहानि नही हो सकती। देश के अनेक हिस्सों में पत्रकारों की प्रताडऩा जारी है। चाहे छत्तीसगढ़ हो, मध्यप्रदेश हो या उत्तर प्रदेश। कोई भी सत्ता अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं करती। मंचों पर आकर बड़े बड़े नेता लोकतंत्र की दुहाई देते हैं। खास कर विपक्ष में बैठे दल, लेकिन जैसे ही इनको सत्ता मिलती हैं, ये तानाशाह जैसे हो जाते हैं। पुलिस का इस्तेमाल लोगों के दमन के लिए किया जाता है। बिल्कुल अंग्रेज़ों के ज़माने की तरह। इसलिए जब हम संविधान दिवस मनाते हैं तो हमें विचार करना चाहिए कि श्रेष्ठ संविधान में झोल कहाँ कहाँ हैं। इनको फौरन दूर करना चाहिए। संविधान में हर धर्म की श्रेष्ठ बातों को शामिल किया गया है। इस तरह संविधान सर्वश्रेष्ठ धार्मिक पुस्तक है। इसे ही आदर्श मानना चाहिए। वे लोग विचार करें जो कहते हैं कि हमारा धर्म पहले हैं। ऐसे लोग कहीं न कहीं देश विरोधी भावना से भी भरने लगते हैं। सार रूप में कहना यही है कि संविधान का अनुपालन ठीक हो, और जो कानून नागरिकों की स्वतंत्रता को बाधित करें, उनका दमन करें, उनको खत्म किया जाए। पुलिस को, आईएएस को हद से अधिक अधिकार दिए गए हैं, इस कारण उनका आचरण तानाशाह जैसा हो जाता है। उन पर राज्य का पूर्ण अंकुश रहे। उनको बर्खास्त करने का अधिकार राज्य के पास रहे। इससे भी बहुत हद तक अंकुश लग सकता है।