भारतीय कुश्ती महासंघ पिछले कुछ वर्षों से विवादास्पद बना हुआ था। पूरे देश ने कुश्ती के श्रेष्ठ खिलाडिय़ों को सड़कों पर धरना देते हुए देखा ।ओलंपिक विजेता कुश्ती पहलवानों को आंसू बहाते देखा। अपने सम्मानों को वापस करते हुए भी देखा। यह बहुत दु:खद स्थिति रही। आखिरकार सरकार ने यह बहुत अच्छा निर्णय किया कि जो नया कुश्ती महासंघ गठित हुआ, उसे फिलहाल निलंबित कर दिया। कुश्ती महासंघ में चलने वाले दाँव-पेंचों से कुश्ती का भला नहीं हो सकता। कुछ लोगों की दुकानदारी जरूर चमक सकती है। लेकिन अंतत देश का नुकसान होता है । अच्छे खिलाड़ी आगे नहीं आ पाते। मेरा अपना मानना है, (और यह लगभग सभी की राय हो सकती है ) कि तमाम खेल संघों में राजनीतिज्ञों का वर्चस्व नहीं होना चाहिए। वहां के शीर्ष पदाधिकारी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी ही होने चाहिए । बेशक उसमें मंत्री, विधायक, सांसद भी शामिल हों, लेकिन उनकी पृष्ठभूमि खिलाड़ी वाली होनी चाहिए। एक खिलाड़ी ही खेल भावना के साथ काम कर सकता है । अगर विशुद्ध राजनीतिज्ञ व्यक्ति किसी भी खेल संघ का अध्यक्ष बनता है, तो वह खेल के बारे में काम सोचेगा, जोड़-तोड़ पर अधिक ध्यान देगा। परिचितजनों के कमजोर खिलाड़ी को आगे बढ़ाने का काम करेगा। रिश्तेदारी भी निभाने की कोशिश करेगा। खिलाडिय़ों को अपने इशारे से नाचने का प्रयास करेगा। अगर पुरुष है तो महिलाओं के शोषण की भी कोशिश करेगा । कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष पर इस तरह के आरोप लगाते रहे हैं । कुछ महिला खिलाडिय़ों ने खुलकर उनके खिलाफ आवाज बुलंद की। उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा की परवाह किए बगैर यह खुलकर कहा कि हमारे साथ अश्लील हरकतें होती थीं। अन्य राज्यों में भी खेल संघों के पदाधिकारियों पर इस तरह की उंगलियां उठती रही हैं। इसलिए किसी भी खेल संघ के पदाधिकारी का चयन करते वक्त उनकी राजनीतिक योग्यता नहीं, खेल विषयक योग्यता और परंपरा को देखना चाहिए। भारत देश आज भी वैश्विक स्तर पर खेल के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। इसलिए बहुत जरूरी है कि विभिन्न खेल संघों में ऐसे प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को शामिल करें, जो पूरी ईमानदारी के साथ बेहतर खेल प्रतिभाओं को चयनित करें। आज भी हमारे गांव में श्रेष्ठ खिलाड़ी मिल सकते हैं । वहां जाकर उनका चयन करना और उन्हें हर तरह की सुविधा देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बनना खेल संघों की जिम्मेदारी होती है । दुनिया के कुछ देश यही करते हैं। वे अपने खिलाडिय़ों का चयन करके वर्षों तक उन पर व्यय करते हैं ।उन्हें अच्छे से तैयार करते हैं। यही कारण है कि वे खिलाड़ी विश्व स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में शामिल होकर अपने देश के लिए स्वर्ण पदक भी जीतते हैं। ओलंपिक संघ हो या क्रिकेट संघ या कोई अन्य खेल संघ, उनमें गैर खिलाडिय़ों का पदाधिकारी होना लोगों को चुभता है। यह परंपरा खत्म होनी चाहिए । कुश्ती संघ के विवाद को देखते हुए एक महिला पहलवान ने बहुत सही सुझाव दिया कि कुश्ती महासंघ में अध्यक्ष किसी महिला को बनाना चाहिए । महिला के आने के बाद अनेक समस्याएं अपने आप खत्म हो सकती हैं ।हमारे देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर की कुछ महिला पहलवान हैं,जो महासंघ की जिम्मेदारी संभाल सकती हैं।