छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विधायकों को भाजपा हाईकमान ने सख्त हिदायत दी है कि सब को जनता के बीच बेहतर छवि बनाकर काम करना है। हिदायत यही है कि मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री,और विधायक चार दिन राजधानी में रहे और तीन दिन अपनी-अपनी विधानसभा क्षेत्र में रहें। मुझे लगता है कि हाई कमान का यह निर्देश समय सापेक्ष है। छह महीने बाद लोकसभा के चुनाव भी होने हैं इसलिए जरूरी है कि हर विधायक अपने क्षेत्र के मतदाताओं के साथ जुड़ा रहे ताकि अभी जो विजयश्री मिली है, उसे लोकसभा चुनाव में भी कायम रखा जा सके। मेरा अपना मानना है कि किसी भी हाई कमान को अपनी पार्टी के सरकारों के लिए इस तरह के निर्देश देने की जरूरत नहीं पडऩी चाहिए कि आपको कुछ दिन राजधानी में तो कुछ दिन अपने विधानसभा क्षेत्र में रहना है। यह तो हर जन प्रतिदिन का परम कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपने मतदाताओं से, अपने क्षेत्र की जनता से जुड़ रहे । ज्यादातर मामलों में यही होता है कि एक बार चुनाव जीत कर विधायक महोदय राजधानी क्या पहुंचते हैं, वे पलट कर देखते ही नहीं। जनता को भूल ही जाते हैं ।जैसे राजा कभी राजा दुष्यंत शकुंतला को भूल गए थे। बाद में जब उन्हें शकुंतला ने अंगूठी दिखाई तब राजा दुष्यंत की याददाश्त वापस लौटी। हमारे जनप्रतिनिधि भी चुनाव जीतने के बाद दुष्यंत की तरह हरकत करने लगते हैं। अपनी लूटखसोट की दुनिया में इतने मग्न हो जाते हैं कि उन्हें याद ही नहीं रहता कि जनता भी है ,उसकी कुछ समस्याएं हैं, कुछ मुद्दे हैं, उन पर विचार किया जाना चाहिए।उनकी समस्याओं का निराकरण किया जाए । लेकिन इन सबकी अनदेखी होती है। अनुभव तो यही है कि विधायक बनने के बाद से ही अनेक विधायक स्मृति लोप के शिकार हो जाते हैं। कुछ चालाक जन प्रतिनिधि तो अपना फोन नंबर भी बदल देते हैं, या पुराने नंबर पर कोई कॉल करता है तो अपने किसी सहायक को थमा देते हैं। बात ही नहीं करते। इसी विषय पर मैंने पिछले दिनों एक मित्र की पीड़ा को कथा में तब्दील किया था ।वह कुछ इस तरह है कि ‘हमारे मित्र के समाज का एक नेता विधायक बन गया, तो हमने मित्र को फोन किया, ‘बधाई ! आपके स्वजन विधायक बन गए । उनको बधाई तो दे दी होगी। एक समय आपने उनकी बड़ी मदद की थी। इतना सुनना था कि उन्होंने पहले अश्लील गाली दी फिर बोले, ‘साले को कई बार फोन किया, व्हाट्सएप भी, लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। कोई ज़वाब ही नहीं दिया। उनकी बात सुनकर हँसी आ गई। मैंने कहा, ‘इसका मतलब है कि बंदा पक्का विधायक बन गया है। तो ये हाल है। ऐसे लोग पाँच साल तक तो जरूर विधायकी का आनंद ले लेते हैं लेकिन अगले चुनाव में बुरी तरह पराजित हो जाते हैं । इन का पतन इसलिए होता है कि अपने आप को बहुत बड़ा आदमी समझने लग जाते हैंम जबकि इनको बड़ा बनाने का काम जनता करती है। और उसी जनता से ये अपनी दूरी बना लेते हैं। भाजपा हाईकमान ने विधायकों की मानसिकता को अच्छे-से समझा है इसलिए उन्होंने यह निर्देश दिए हैं कि वह अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में भी समय दें। वहां के लोगों से मिले-जुलें। उनकी समस्याओं को सुनें और समाधान करें । अगर बीजेपी इन पांच सालों में ऐसा करवा सकी तो कोई बड़ी बात नहीं है कि आगामी चुनाव में फिर सत्ता में वापस लौट आए। कांग्रेस का पतन सिर्फ इसलिए हुआ कि उसके तमाम मंत्री अपने आप को शहंशाह समझने लगे थे। विधायकों का भी जनता से संपर्क टूट गया था। जिनका थोड़ा- बहुत संपर्क बचा रहा ,वे जीत गए। अगर विधायकों का जनता के बीच में जाने का सिलसिला बना रहेगा, तो ये चेहरे अनजान नहीं रहेंगे। और अगर मतदाताओं से इनके मधुर संबंध रहे, समस्याओं का समाधान भी होता रहा तो उन्हें दोबारा भी जीत हासिल हो सकती है।