औकात यानी हैसियत । बड़ा खतरनाक शब्द है। अगर हम किसी व्यक्ति को कहते हैं तुम्हारी औकात क्या है, तो उसे बुरा लगता है। मगर कुछ नादान लोग कभी-कभी अपने पद के मद में या पैसे के गुरूर में लोगों को औकात दिखाने लगते हैं । जबकि सच्चाई यह है कि इस दुनिया में किसी की कोई औकात नहीं है। औकात तो बस ऊपर वाले की। कोई भी व्यक्ति कुछ बनता है तो उसके पीछे उसका थोड़ा-बहुत परिश्रम होता है लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि उसे बनाने के पीछे अनेक लोगों का खून-पसीना लगा है, इसलिए उसकी अपनी भी कोई औकात नहीं है। समाज एक- दूसरे के सहयोग से चलता है। कोई भी व्यक्ति आकाश से टपक कर अपने आप पुष्पित-पल्लवित नहीं होता।बच्चा जब दुनिया में आता है तो उसकी अपनी कोई औकात नहीं होती कि अपने आप बड़ा होता जाए। उसके मां-बाप उसकी सेवा करते हैं, ज्ञान उसको शिक्षक देता है, उसे अच्छा प्रशिक्षण मिलता है तब धीरे-धीरे वह किसी योग्य बनता है। आईएएस, आईपीएस या कुछ और। सबके सहयोग से वह किसी बड़े पद तक पहुंचता है । लेकिन वहां पहुंच कर उसे अपनी मनुष्यता नहीं त्यागनी चाहिए । उसे समझना चाहिए कि वह जो कुछ भी है ,समाज की कृपा है। वरना इसकी क्या औकात थी। पिछले दिनों मध्यप्रदेश में एक ऐसी घटना हुई, जो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई । एक कलेक्टर में भरी सभा में एक ट्रक चालक को फटकारते हुए कहा, तुम्हारी औकात क्या है। कलेक्टर के बात करने का लहजा ठीक नहीं था तो ड्राइवर ने कहा कि आप किस तरह की बात कर रहे हैं। बस, कलेक्टर को बड़ा बुरा लगा। भला कलेक्टर से कोई जुबान लड़ा सकता है! कलेक्टर भड़क गए और ड्राइवर से कहा, तुम्हारी औकात क्या है । जब कलेक्टर ने उसे फटकारा तो दौड़कर एक पुलिस अफसर ने भी चालक को जबरन बैठा दिया। अब तो हम सोशल मीडिया के दौर में हैं।हर किसी के पास कैमरा है, तो वीडियो वायरल हो गया। बात मुख्यमंत्री तक पहुंची। इस घटना का सबसे उज्जवल पहलू यह है कि मुख्यमंत्री ने तत्काल ही उसे कलेक्टर को उसकी औकात बता दी ।उसे कलेक्टर के पद से दौरान हटाकर भोपाल बुला लिया। इस घटना से शायद कलेक्टर को ही अपने बारे में पता चल गया कि दरअसल उसकी भी कुछ औकात नहीं है। वह मुख्यमंत्री के हाथों की कठपुतली मात्र है। चाहे कलेक्टर हो एसपी हो, मंत्री हो, एक्सवाईजेड कोई भी हो, किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह अंतत: साधारण मनुष्य ही है। वह जो कुछ भी बना है, उसके पीछे समाज का बड़ा योगदान है। उसकी जो भी हैसियत है, उसके पीछे घर-परिवार और समाज का योगदान है। इसलिए उसको सबका केवल ऋणी रहना चाहिए। ड्राइवर हो, चपरासी हो, या कोई चर्मकार, सबकी अपनी हैसियत है। किसी को छोटा समझने की मानसिकता ही यह बताती है कि आपकी कोई औकात नहीं है। कोई भी अधिकारी हो, लोकतंत्र में जनता का नौकर है। उसे वेतन मिलता है। वह भी वेतनभोगी अधिकारी है इसलिए उसे अपनी औकात समझनी चाहिए कि वह कोई दाता नहीं है। हाँ,उसे थोड़े-बहुत अधिकार लोकतंत्र ने दिए हैं ।वह मालिक तो कतई नहीं है । लेकिन जो अपनी औकात भूल जाते हैं, वही औकात की ज्यादा बात करते हैं । मुझे लगता है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक सुंदर उदाहरण पेश किया है। इस उदाहरण के बाद कोई भी अधिकारी किसी से औकात की बात नहीं करेगा और बहुत सभ्य-शालीन तरीके से लोगों से पेश आएगा । बशर्ते वह ऐसे उदाहरण को याद रखे। बहरहाल, अपनी एक लघुकथा के साथअपनी बात यहीं खत्म करता हूं। इसका शीर्षक ही है औकात। एक सेठ के दो पुत्र थे। उसने सोच लिया था कि छोटे को गल्ले पर बिठाऊँगा, बड़े को कलेक्टर बनाऊँगा। पिता ने लड़के को समझाया गया कि कलेक्टर बड़ी ऊँची चीज होती है। तुमको कलेक्टर साहब बनना है। लड़के ने मन लगा कर दिन-रात पढाई की।अंतत: कलेक्टर बन गया। बनने के बाद वह बड़बड़ाया, साला मैं तो साहब बन गया। मुख्यमंत्री, मंत्री को वह सर-सर बोले, मगर कोई सामान्य व्यक्ति पास आए, तो उससे बदतमीजी करे। उसका तकियाकलाम हो गया था, तुम्हारी औकात क्या है? लोग परेशान । अजीब किस्म का जीव है। हर समय औकात की बात करता है । शिकायत मुख्यमंत्री तक पहुँची। मुख्यमंत्री मुस्कुराए और दूसरे दिन ही कलेक्टर को जिले से हटा कर सचिवालय में अटैच कर दिया। अब कलेक्टर को अपनी औकात भी समझ में आ चुकी थी।