पंजाबी साहित्य को विश्व साहित्य की श्रेणी में खड़ा कर देने वाले महत्वपूर्ण कवि 79 वर्षीय सुरजीत पातर के चले जाने से (11 मई, 2024) पंजाबी साहित्य ही नहीं, भारतीय साहित्य का भी बड़ा नुकसान हुआ है। इससे भी एक कदम आगे बढ़कर कहूँ कि विश्व साहित्य की क्षति हुई है । पद्मश्री, साहित्य अकादमी, सरस्वती सम्मान जैसे अनेक महत्वपूर्ण सम्मानों से विभूषित सुरजीत पातर ने अनेक प्रतिरोधी कविताएँ लिखकर यह स्थापित किया कि रचनाकार व्यवस्था का प्रवक्ता नहीं होता। वह अन्याय का प्रतिरोध करता है। सुरजीत जी को प्रतिरोध की ताकत गुरुनानक देव जी जैसे महानतम संतों से मिली थी। गुरुनानक जी खुद एक समर्थ कवि थे, जिन्होंने हमलावर बाबर को ललकारा था। बाबर के विरुद्ध उन्होंने रचना की थी। जो व्यक्तित्व बाबर को ललकार सकता है, वह कितना साहसी व्यक्तित्व होगा उसकी हम सहज कल्पना कर सकते हैं। तो सुरजीत पातर उसी प्रतिरोधी-परंपरा के कवि रहे । इसका एक बड़ा प्रमाण तो यह है कि जब पंजाब में किसान आंदोलन चल रहा था तो उसके समर्थन में सुरजीत पातर ने उनको मिली पद्मश्री सम्मान लौटने का ऐलान किया था।
डॉक्टर चमन लाल जैसे समर्थ अनुवादकों के जारिये हमने सुरजीत पातर की रचनाएँ पढ़ीं और उन्हें समझा भी। गूगल के जरिए भी उनकी अनेक धारदार कविताएँ हमें पढऩे को मिल जाती हैं । मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि एक दशक पहले जब मैं साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की हिंदी प्रमर्द्ध मंडल और अकादेमी की सामान्य सभा का सदस्य था, तब सुरजीत पातर से दिल्ली में मुलाकातें हुई और उन्हें सुनने का अवसर भी मिला। वह साहित्य में रुचि रखने वाले सिखों के बीच में काफी लोकप्रिय थे। कनाडा में लाखों सिखबंधु निवास करते हैं। वहां भी वह बेहद लोकप्रिय थे। एक उदाहरण साहित्य अकादेमी के सचिव श्रीनिवास राव ने बताया कि जब कनाडा में एक कवि सम्मेलन के लिए सुरजीत पातर को आमंत्रित किया गया, तो जिस पंचतारा होटल में उन्हें रुकवाया गया था, उस होटल के रजिस्टर में उनका नाम जॉनसन के रूप में दर्ज किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया कि अगर वहां के लोगों को पता चल जाएगा कि सुरजीत पातर इसी होटल में आकर रुके हैं, तो सैकड़ो लोग मिलनेवपहुँच जाएँगे तो होटल की व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। यह एक उदाहरण पातर जी की असाधारण लोकप्रियता को बताने के लिए पर्याप्त है।
सुरजीत पातर एक वैश्विक-दृष्टि-संपन्न रचनाकार थे इसीलिए उन्होंने विश्व के कुछ महत्वपूर्ण रचनाकारों की रचनाओं का अनुवाद पंजाबी में किया,यानी गुरुमुखी में। फिर चाहे वे पाब्लो नेरुदा, गार्सिया लोर्का हो, बर्तोल्त ब्रेख्त हों या कन्नड़ के बड़े रचनाकार गिरीश कर्नाड। श्रेष्ठ साहित्य उन्हें दिखा उसे पंजाबी साहित्य को परिचित कराने का कार्य सुरजीत पातर ने किया। पंजाबी के महान कवि शिवकुमार बटालवी की रचनाओं के आधार पर उन्होंने रूपक भी लिखे। पंजाबी साहित्य में कुछ नाम बेहद चर्चित रहे हैं। जैसे भाई वीर सिंह, प्रो पूर्ण सिंह,सोहन सिंह, अमृता प्रीतम, शिवकुमार बटालवी,अवतार सिंह संधु पाश आदि। इस परंपरा में सुरजीत पातर का भी नाम सम्मान से लिया जाता रहा है। हालांकि नानक सिंह जैसे महानतम पंजाबी साहित्यकार को हम भूल नहीं सकते,जिन्होंने अनेक महत्वपूर्ण उपन्यास लिखे, जिसमें पवित्र पापी तो काफी चर्चित रहा, जिस पर हिंदी फिल्म भी बनी थी। पातर जी को अपना गाँव बहुत प्यारा था,पातर कलां। इसलिए उन्होंने अपना नाम गांव के साथ जोड़ लिया। अपना उपनाम ही पातर रख लिया।
सुरजीत पातर की रचनाओं में क्रांति का जो पुट हमें दिखाई देता है, वही इन्हें बड़ा रचनाकार बनाता है। कोई भी रचनाकार इतिहास में तभी याद रखा जा सकता है, जब उसकी रचनाओं में दमन, अन्याय और पीडि़त मानवता के लिए भावनाएं मुखरित होती हैं। सिर्फ प्रकृति-वंदन या सामान्य जीवन-दर्शन की कविता ही कविता नहीं होती। असली कविता मनुष्य की पीड़ा का आख्यान होना चाहिए। और यही काम सुरजीत पातर ने किया।