छत्तीसगढ़ में पिछले तीन महिनों से आरक्षण को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है। वैसे तो इसकी शुरुआत 2019 से हो गयी थी,जब भूपेश सरकार ने अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का कोटा 27 प्रतिशत बढ़ाते हुए एक अध्यादेश जारी किया था। इस अध्यादेश को उच्च न्यायालय ने रद्द कर विस्तृत आंकड़ों सहित आरक्षण संबंधी कानून बनाने की बात कही थी। इधर सितम्बर महिने में 2011 से जारी अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 32 प्रतिशत आरक्षण सहित कुल 58 प्रतिशत आरक्षण के कोटे को उच्च न्यायाय ने खारिज कर दिया। इसके बाद दोष सरकार पर आ गया कि चूंकि मामले को न्यायालय में सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया गया इसलिए जनजाति वर्ग के लिए आरक्षण का प्रतिशत वापस 32 से कम होकर 20 प्रतिशत हो गया। प्रदेश भर में आंदोलन होने लगा। इससे परेशान प्रदेश सरकार ने विशेष अधिवेशन बुलाकर विधानसभा में एक विधेयक पारित किया और इस विधेयक अनुसूचित जनजाति वर्ग को 32 प्रतिशत का कोटा बहाल करते हुए पिछड़े वर्ग को भी 27 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया। इस कारण प्रदेश में कुल आरक्षण का प्रतिशत बढ़कर 76 प्रतिशत हो गया। विधेयक पारित होने के बाद भी आरक्षण को लेकर बहस खत्म नहीं हो रही। राज्यपाल ने इस विधेयक पर अभी हस्ताक्षर नहीं किए हैं और उन्होंने सरकार से कुछ सवाल भी पूछे हैं। आरक्षण को लेकर कांग्रेस पार्टी राज्यपाल पर भी राजनीति करने का आरोप लगाने लगी है। इन तमाम परिस्थिति के लिए अहम सवाल है यह है कि विधानसभा में पारित विधेयक का हश्र क्या होगा? अगर राज्यपाल विधेयक पर हस्ताक्षर कर भी देती है तो क्या यह मामला न्यायालय में नहीं जाएगा? और जब पूर्व में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को जब न्यायालय ने खारिज किया है तो फिर 76 प्रतिशत को अनुमति कैसे मिलेगी। यह सवाल महत्वपूर्ण है और इसलिए युवाओं की चिंता जायज है जो आरक्षण की बहस के चलते परेशान है। परेशान इसलिए है क्योंकि उन्हें शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। परेशान इसलिए है क्योंकि प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रक्रिया थम गई है, नई भर्तियां नहीं हो रही है। एक अहम बात यह है कि जब संवैधानिक व्यवस्था में यह स्पष्ट है कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं किया जा सकता तो फिर सरकार न्यायालय में इसे कैसे स्थापित करेगी। कुल मिलाकर प्रदेश में आरक्षण को लेकर जो बहस चल रही है उसमें समाज के वंचित वर्ग को लाभ पहुंचाने की मंशा कम और चुनाव में लाभ लेने की मंशा अधिक दिखाई दे रही है।