पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब दिल्ली में मिले तो मोदी जी ने बघेल जी से यही अनुरोध किया कि आप छत्तीसगढ़ में मिलेट (यानी मोटे अनाज) को प्रोत्साहित करें। मुख्यमंत्री ने भी इस बात के लिए सहमति जाहिर की। और अब लग रहा है कि छत्तीसगढ़ में धीरे धीरे मिलेट-संस्कृति को प्रोत्साहन मिलेगा। बहुत समय पहले इस शब्द से मेरा परिचय नहीं था। हालांकि बाजरा, वार, रागी, कोदो, कुटकी आदि मोटे अनाज को मैं जानता था। लेकिन इन्हें ही मिलेट कहा जाता है, बाद में पता चला। दुर्भाग्य की बात है कि इस तथाकथित नए दौर में मोटे अनाजों के प्रति हमारे समाज में उदासीनता ही नजऱ आती है। आज चमक-दमक का जमाना है। अनाज के जितने भी प्रकार हैं,यहां तक कि खाने के जो तेल आदि हैं, उनको भी रिफाइंड करके बाजार में प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति पनप गई है। ये देखने में आकर्षक होते हैं लेकिन इनके गुणवत्ता बेहद न्यून होती है। इन सब चीजों का मीडिया के माध्यम से ऐसा प्रचार होता है कि लोग बरबस आकर्षित हो जाते हैं। मोटे अनाज की लोग उपेक्षा करते रहे हैं, जबकि हमारे बुजुर्ग मोटे अनाज ही खाते रहे हैं। ये अनाज ज्यादा शुद्ध होते हैं। पौष्टिक भी होते हैं। यह अच्छी बात है कि अब हमारे प्रधानमंत्री ने भी उस ओर ध्यान आकृष्ट किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ को भी भारत ने ही प्रस्ताव दिया था कि 2023 को विश्व मिलेट्स वर्षके रूप में घोषित करें। भारत के इस प्रस्ताव को तमाम देशों ने समर्थन भी दिया और बाद में संयुक्त राष्ट्र ने घोषित किया कि 2023 को हम मिलेट वर्ष के रूप में मनाएंगे। लगे हाथ मैं यही कहना चाहता हूँ कि भारत के बाद को अब पूरी दुनिया सुन रही है। भारत सरकार ने ही जब कुछ वर्ष पहले कहा कि 21 मई को योग दिवस मनाना चाहिए तो संयुक्त राष्ट्र ने उस पर अपनी मुहर लगाई और आज पूरी दुनिया में योग दिवस मनाया जाता है। इसी कड़ी में भारत के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र ने स्वीकार किया और यह पूरा वर्ष मिलेट वर्ष होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत में मोटे अनाज के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ेगा और सब अपने खानपान में मिलेट्स को आत्मसात करेंगे। फिलहाल मंदिर हसौद के पास डिवाइन अर्थ नामक एक ऐसा केंद्र विकसित हो रहा है जिसे लोग मिलेट कैफे के रूप में जानने लगे हैं। यहां मिट्टी के बर्तन में खाना बनता है और तरह-तरह के व्यंजन बाजरा, वार, रागी,कोदो, कुटकी आदि के ही बनाकर परोसे जाते हैं। साहीवाल, गीर और खारपारकर जैसे उन्नत नस्ल ववालागोवंश भी यहां है। उनके उत्पाद लोगों तक पहुंचाए जाते हैं। रायगढ़ में भी इसी तरह का प्रयास शुरू हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में सरकारी सहयोग से पूरे छत्तीसगढ़ में इस का प्रचार- प्रसार होगा । इससे किसानों को भी फायदा होगा। मिलेट्स की विशेषता यह है कि ये कम पानी में जैविक तरीक़े से उगाए जा सकते हैं। जमीन उर्वरक होनी चाहिए। मिलेट्स स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। कह सकते हैं कि ऐसे जैविक अनाज के सेवन करके हम अपने शरीर को आयरन, कैल्शियम, फाइबर, प्रोटीन आदि तत्वों से परिपूर्ण हो सकते हैं। निसन्देह ये एक तरह से सुपरफूड हैं। आज जब पिज़्ज़ा, बर्गर, चाऊमीन और स्पाइसी चीजों की ओर युवा पीढ़ी का यादा रुझान है, तब अगर पूरी दुनिया मोटे अनाज की ओर लौटने का संकल्प कर रही है, तो इसका मतलब यह है कि आने वाला समय न केवल स्वस्थ भारत का होगा,वरन स्वस्थ दुनिया का भी होगा। मोटा अनाज खाने के कारण हम सबका स्वास्थ्य ठीक रहता है। शरीर का वजन भी नहीं बढ़ता। जैसा कि मैंने पढ़ा है, अगर बाजरे के आटे का हमसब नियमित उपयोग करें तो हमारा स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। ये अनाज रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते हैं। हमारी पाचन प्रणाली को दुरुस्त करते हैं। हमारे लीवर, किडनी सब ठीक-ठाक काम करते हैं। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम मिलेट्स की दुनिया में लौटे और जितना हो अधिक हो सके प्रकृति के नजदीक जाएं। जैविक उत्पादों को महत्व प्रदान करें। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में भी इस तरह के अनाज के महत्व को बताया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 2023 मिलेट वर्ष तो होगा ही और पूरा देश मोटे अनाज के महत्व को समझेगा और अपने सेहत को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ेगा। देश की सभी राय सरकारें इस ओर ध्यान देंगी।