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राजनीति का गालीवाद!

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आजादी के तुरंत बाद कम-से-कम एक दशक की राजनीति कुछ-कुछ मानवीय मूल्यों से भरी हुई थी। लेकिन धीरे-धीरे वैचारिक मतभेद मनभेद में बदलते चले गए। और आज तो हालत यह है कि मनभेद जहरीली मानसिकता में बदल चुका है। उसका चरम हमें उस वक्त दिखाई देता है, जब विपक्ष मैं बैठे लोग प्रधानमंत्री को जहरीला सांप, गंदी नाली का कीड़ा, या मोदी तेरी कब्र खुदेगी जैसे अनेक घृणास्पद वाक्य बोलकर अपनी कुंठा का इजहार करते हैं। एक सज्जन तो आंकड़ा पेश किया कि प्रधानमंत्री को अब तक इक्यानवे बार गालियां दी गई हैं। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री को जहरीला सांप कहा। यह शायद इनक्यावनवीं गाली थी। जब इस बयान का व्यापक विरोध होने लगा तो उन्होंने आत्म-मंथन किया और अपने इस कथन के लिए खेद भी व्यक्त करते हुए कहा कि मैंने ऐसा मोदी के लिए नहीं, भाजपा के लिए कहा था। अगर खेद व्यक्त नहीं करते तो इनको भी मानहानि का मुकदमा झेलना ही पड़ता। वैसे देखा जाए तो भाजपा में भी जवाबी हमला करके घृणास्पद बोल बोलने वाले कम नहीं हैं। भाजपा के एक विधायक ने सोनिया गांधी को विष-कन्या कह दिया। हालांकि उन्होंने जहरीले सांप के ज़वाब में ऐसा कहा, लेकिन नहीं कहना चाहिए था। सोनिया गांधी को कांग्रेस की विधवा भी कहा गया। राजनीति में अगर भाषा का संयम न रखा गया, तो वह खतरनाक मोड़ पर पहुंच जाती है, और इस समय ऐसे ही दुखद स्थितियां सामने नजर आ रही हैं। राजनीति में जो विपक्ष में है, वह दरअसल इस आशंका से बौखला यह हुआ है कि पता नहीं कल उसे सत्ता मिलेगी या नहीं। इसलिए वह सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की छवि खराब करने की पूरी कोशिश कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों से यही सिलसिला चल रहा है राजनीति की भाषा इतनी विकृत होगी, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। अब लोग विचारों के सहारे नहीं, गालियों के सहारे आरोप-प्रत्यारोप का खेल कर रहे हैं ।जैसे राहुल गांधी ने कह दिया कि सारी मोदी चोर क्यों होते हैं। भगोड़े ललित मोदी,नीरव मोदी के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी का नाम ले लिया। उस का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। सांसदी से हाथ धो बैठे। अब अदालत की चक्कर लगा रहे। अगर एक मोदी चोर है, तो सारे मोदी को आप कैसे अपमानित कर सकते हैं ? नीरव-ललित मोदी का नाम ले कर आप उनको सौ बार चोर कहें, भगोड़ा कहें, कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन आप उसी केटेगरी में देश के प्रधानमंत्री को भी घसीट लेंगे, तो मानहानि का मामला तो बनता-ही-बनता है। फिर आप कहें कि मैं माफी नहीं मागूंगा, यह अनुचित बात है। अगर अति उत्साह में मुँह से कोई गलत बात निकल गई है, तो उसके लिए खेद व्यक्त करने में कोई बुराई नहीं। आखिर कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने जहरीले सांप वाले अपने बयान पर खेद व्यक्त किया ही न! वैसे राजनीति में यह चरित्र भी पनप रहा है कि पहले आप किसी की मानहानि करें, फिर बाद में माफी भी मांग लें। आप किसी के विरुद्ध कुछ बोलना चाहते हैं तो प्रवृत्तियों पर प्रहार करें। प्रतीकों में बात करें, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। यह उचित नहीं कि आप सीधे-सीधे किसी व्यक्ति का नाम ले कर उस पर गंभीर आरोप लगा दें। आज हालत यह है कि देश के अनेक नेता मानहानि का मुकदमा झेल रहे हैं। अंत में ये लोग जान छुड़ाने के लिए अदालत में माफी भी मांग लेते हैं। प्रश्न यह है कि ऐसी नोबत आए ही क्यों? इसलिए वाक-संयम ज़रूरी है। अगर राजनीति में लंबे समय तक टिके रहना है तो भाषा का संयम, शालीनता, शुचिता का होना बहुत जरूरी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि धीरे-धीरे राजनीति का चल पड़ा गालीवाद खत्म होगा।