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चैटजीपीटी साहित्य!

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चैटजीपीटी समाज की मौलिक प्रतिभा का, उसके चिंतन को नष्ट करने का एक ऐसा नया माध्यम है, जिसका दुष्परिणाम अब नजऱ आने लगा है। अनेक नए लड़के इसके सहारे कविताएं कर रहे हैं। किताबें भी छपवा रहे हैं। अब होगा यही कि जो साधक हैं, वे किनारे हो जाएंगे और जो नकलची हैं, वे छाए रहेंगे। पिछले दिनों मैंने गूगल में जा कर चैटजीपीटी को खोला और वहाँ लिखा माँ पर कविता लिखे, तो मेरे सामने आ गई यह कविता। देखिए इसे, जगत की राजमाता है, माँ कहलाती है, प्रेम की योति जगाती है, माँ कहलाती है।जन्म से ही आशीष देती है, माँ कहलाती है, हर दु:ख को दूर भगाती है, माँ कहलाती है।मुसीबतों के सामने खड़ी होती है, माँ कहलाती है, अपने बचों को समर्पित होती है, माँ कहलाती है।ममता की आग जलाती है, माँ कहलाती है, सबको गोद में ले जाती है, माँ कहलाती है।उनकी ममता अपार है, माँ कहलाती है, हर दिन का त्योहार है, माँ कहलाती है।
दु:ख सुख के साथ खड़ी रहती है, माँ कहलाती है, खुशियों के अंगार बन जाती है, माँ कहलाती है।
जगत की राजमाता है, माँ कहलाती है, प्रेम की योति जगाती है, माँ कहलाती है।माँ, तुम हो ममता की देवी, तुम्हारे बिना ये जग सूना है बेवकूफी। तुम्हारी एक झलक पर हम सब वारी,
माँ, तुम हो हमारी दुनिया की अपारी।
चकित हूँ मैं। सोचिए, यह माध्यम हमारी मौलिकता के लिए कितना बड़ा खतरा है! न जाने कितने ही भ्रष्टाचारी, खा -पीकर अघाये बुद्धिहीन, चोर लोग भी आने वाले समय में कवि बन जाएंगे। शायद बन भी रहे हों! उनकी पुस्तकें भी छप जाएँ। चैटजीपीटी की मदद से कोई कविता बनी है, किसे पता चलेगा? यह और बात है कि उसकी आत्मा उसे धिक्कारेगी। अगर वह होगी तो! अफसोस! चैटजीपीटी पर आप भी माँ पर कविता टाइप करके देखें। एक कविता आ जाएगी। हालांकि पूरी कविता पढ़ कर समझ में आ जाता है कि कविता किसी व्यक्ति ने नहीं, सचमुच चैटजीपीटी ने ही लिखी है। अंत में जैसे बेवकूफी, अपारी,खुशियों के अंगार देखें। जैसे शब्द और वाक्य हैं जो एकदम असंगत हैं। वाक्य विन्यास भी कहीं-कहीं सही नहीं है। मैं युवा पीढ़ी से आग्रह करूँगा कि वह कविता, कहानी या साहित्य की किसी भी विधा में लिखने के लिए चैटजीपीटी की मदद न लें, वरना उनका मौलिक चिंतन नष्ट हो जाएगा। आप मानसिक विकलांगता के शिकार हो जाएँगे। आप अन्य क्षेत्र में सूचनाओ को प्राप्त करने के लिए
चैटजीपीटी का उपयोग कर सकते हैं लेकिन साहित्य रचना के लिए अपनी मौलिक विधा का इस्तेमाल करें। इस से सृजन का संतोष होगा। मन में अपराध बोध नहीं होगा। रचना को देखेंगे तो यह सोच कर ग्लानि नहीं होगी कि जो कुछ मैंने लिखा है मेरा नहीं है, चैटजीपीटी का माल है।
वैसे चैटजीपीटी द्वारा लिखी जाने वाली नई कविता को ठीक-ठाक करके कोई फर्जी लेखक अपने नाम से प्रकाशित भी कर सकता है, लेकिन चाहे तकनीक इतनी भी आगे बढ़ जाए, मशीन छंदबद्ध रचना कभी नहीं कर सकती । न दोहा लिख सकती है, न चौपाई रच सकती है। मैंने परीक्षण हेतु चतजीपीटी के बॉक्स में टाइप किया कि चौपाई लिखें, तो निम्न रचना सामने प्रकट हुई, जबकि यह कहीं से चौपाई नहीं है। देखें , राम नाम आदर्श है, धर्म का सार जीवन में। जन्म लेते हैं श्रेष्ठ वन में, धन्य हैं राम की योगिनी। यह किसी भी कोण से चौपाई नहीं है। चौपाई की एक अर्धाली में सोलह मात्राएँ होती हैं। दूसरी में भी सोलह होती हैं।दोहे में पह अर्धाली में तेरह और दूसरी में ग्यारह मात्राएँ होती हैं। दूसरी पंक्ति में भी तेरह ग्यारह मात्राएँ होती हैं। इसी तरह गीत हैं, कुंडलियाँ हैं, सोरठा है। अनेक छंद है। विज्ञान जितनी भी तरक्की कर ले, मानव मन की कोमल भावनाओ को आत्मसात करके वह छंद नहीं रच सकता। हाँ, नई कविता तो लिखी जा सकती है जिसमें छंद का अनुशासन ज़रूरी नहीं होता। चैटजीपीटी जैसी भटकाव वाली असंगत सी कविताएँ हिंदी के अनेक तथाकथित कवि वर्षों से लिख रहे हैं। इस कारण कविता अलोकप्रिय भी हुई। चैटजीपीटी के कारण अब कविता का और कबाड़ा होगा। यानी साहित्य का।