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पत्थरबाजी की मानसिकता

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यह आज का सिलसिला नहीं है ।पुराना सिलसिला है। हिंदुओं की धार्मिक यात्राओं पर कुछ सिरफिरे लोगों द्वारा पत्थरबाजी की जाती है। छत्तीसगढ़ में समरसता का वातावरण है। यहां इस तरह की अराजकता नहीं दिखती। लेकिन अन्य कुछ प्रांतों में बीच बीच मे पत्थरबाजी की घटनाएँ ज़रूर होती हैं। जैसे अभी एक जगह कावंडिय़ोन पर पथराव किया गया तो 31 जुलाई को मेवात के नूंह कस्बे में बृज मंडल धार्मिक यात्रा के दौरान पथराव बाजी हुई। स्वाभाविक है कि यात्रा में शामिल लोगों ने भी जवाबी कार्रवाई की। उन्होंने ने भी पत्थर फेंके और हिंसक स्थिति निर्मित हो गई। अब वहां धारा 144 लागू कर दी गई है। इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई है। प्रशासन ने लोगों से अनुरोध किया है कि वे अफवाहों से बचें। प्रशासन यही कर सकता है लेकिन अंतत: शांति व्यवस्था बनाए रखने का दायित्व समाज का है। खासकर उस समाज का, जिस समाज के कुछ भटके लोगों को सौहार्द बिगाडऩे का बड़ा शौक होता है। न जाने उनके भीतर ऐसी कौन सी धार्मिक कट्टरता उफान मारती है कि किसी धार्मिक यात्रा का स्वागत करने के बजाए, ये लोग उस पर पत्थर बरसाने लगते हैं। जबकि इसी समाज मे अनेक सुलझे लोग भी हैं, जो धार्मिक जुलूसों पर फूल बरसाते हैं। होना यही चाहिए। हम ऐसा समाज चाहते हैं, जहॉ हिन्दू मुस्लिम एक दूसरे के जुलूसों पर फूल बरसाएं। उनका तहे दिल से स्वागत करें। कभी कभार ऐसा होता भी है।ऐसा वे ही करते हैं, जो कुछ पढ़े लिखे हैं। जो समझते हैं कि मिलजुल कर, भाईचारे की भावना के साथ रहना चाहिए। लेकिन जो केवल मूर्ख हैं, अराजक हैं, गुंडे हैं, वे अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आते। पथराव करने लगते हैं। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि कोई भी धार्मिक यात्रा निकले तो वहाँ पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात रहे। वह विघ्नसंतोषी लोगों से सख्ती के साथ निबटे। मेवात में पुलिस ऐसा कुछ नहीं कर सकी, यह दुख की बात। लेकिन पुलिस भी कितना देखे, जब हिंसक पागल भीड़ अपने पर उतारू हो जाए तो उनको सँभालना कठिन हो जाता है। समाज में कुछ लोग अभी भी उग्र धार्मिक कट्टरता के शिकार हैं। इनके जीवन मे उनके धर्म की श्रेष्ठ बातों का कोई असर नहीं दिखता। मोहब्बत की बातें तो करते हैं, मगर व्यवहार में वह दिखता नहीं। दरअसल सारी गलती उनके धर्मगुरुओं का भी है, जो अपने धर्म के नए बच्चों को समझाते नहीं है। ऊपर वाला कभी भी पथराव से खुश नहीं होगा। ऐसे लोग इस भ्रम में न रहें कि ऐसा करके वे ज़न्नत चले जाएंगे। समाज मे हिंसा फैलाने वाले दोजख़ यानी नरक में ही जाने वाले हैं। इसलिए ऐसा काम ही क्यों करें। प्यार, मोहब्बत, भाईचारे के साथ रहें। ऐसी शिक्षा देने का काम मौलानाओं का है, अन्य धर्मगुरुओं का है। यह बहुत आवश्यक है कि हर बच्चे को बचपन से ही यह समझाया जाए कि तुमको अपने धर्म के अलावा दूसरे के धर्म का सम्मान करो। हम दूसरे के धर्म की इज़्ज़त करेंगे तो आपको भी सम्मान मिलेगा। नफरत से नफरत ही बढ़ेगी। एक उधर से पत्थर चलेंगे, तो इधर से भी पत्थर चलेंगे। नुकसान होगा समाज का। अशांति फैलेगी। बेकसूर लोग प्रभावित होंगे। सभ्य समाज में हिंसा, अलगाव की कोई जगह न रहे। लेकिन व्यवहार में यह कल्पना साकार नहीं हो पाती। नैतिक शिक्षा का अभाव बड़ा कारण है। हम कहते वसुधैव कुटुम्बकम मगर कोई इसे ही नहीं माने तो क्या किया जा सकता है। फिर भी उन्मादग्रस्त धार्मिको (?) को निरन्तर समझाया जाए कि पत्थरबाज़ी से कोई धार्मिक लाभ नहीं होने वाला। यह काम उनके धर्मगुरु ही कर सकते हैं। अगर वे सच्चे धर्मगुरु हैं तो!!