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मतदाता जागरुक रहें

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जैसे-जैसे मतदान के दिन करीब आ रहे हैं, वैसे-वैसे प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं के बयानों को हम देखें, तो उनमें तरह-तरह के लोकलुभावन वादों की भरमार नजर आ रही है। अब विचार जनता को करना है कि किसके वादों में कितनी सत्यता है। हमने सरकारों के पिछले वादों को भी देखा है। उसमें कितने पूरे हुए, कितने नहीं हुए; इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है। वादे जब बाद में जुमले बन जाते हैं, तब दुख होता है। जनता ठगी की ठगी रह जाती है, जब वह किसी आकर्षक योजना के झाँसे में आकर किसी पार्टी को चुन लेती है ।लेकिन बाद में पछताती हैं कि उससे गलती हो गई। इसलिए अब भी समय है ।बहुत सोच-समझकर मतदान करना चाहिए । मतदाता को आत्म-मंथन करना चाहिए और नीर-छीर-विवेक के साथ निर्णय लेना चाहिए कि हमें किसके पक्ष में खड़ा होना है। क्या हम समाज को तोडऩे वाले लोगों के साथ खड़े हों या समाज को जोडऩे वाली ताकतों के साथ खड़े हों। इस समय सनातन भी एक बड़ा मुद्दा है। हमें अपने सनातन मूल्यों की भी चिंता करनी है । ये मूल्य बचे रहेंगे तो यह राष्ट्र बचा रहेगा। राष्ट्र सर्वप्रथम होना चाहिए। ईमानदारी के साथ जो लोग राष्ट्र की चिंता में लगे हुए हैं, कायदे से हमें उनके साथ खड़ा होना चाहिए। हो सकता है उनमें कुछ लोग नकली भी हों लेकिन अगर बहुतायत में उनमें राष्ट्रभक्ति की भावना है, तो हमें उनकी ओर देखना चाहिए। अभी मैं एक वीडियो देख रहा था, जिसमें एक राजनीतिक दल का नेता धर्म विशेष के मु_ी भर लोगों के साथ बैठकर उनसे कह रहा था कि आप हमारा साथ दीजिए हमारी सरकार आई तो आप जैसा चाहते हैं वैसा हो जाएगा। अगर कोई नेता किसी एक धर्म विशेष के लोगों के साथ अपना रिश्ता बनाना चाहता है, उनका वोट हासिल करने की कोशिश कर रहा है, तो समझ जाना चाहिए कि यह स्थिति कितनी खतरनाक है । किसी भी दल या पार्टी को सबके लिए समान रूप से काम करना चाहिए। इस दृष्टिकोण से मुझे भारतीय जनता पार्टी की यह नीति बिल्कुल ठीक लगती है, जिसमें वह कहती है, सबका साथ, सबका विकास और सब का विश्वास। किसी भी लोकतंत्र के लिए यह मूल मंत्र है। इसमें दो राय नहीं कि जब इस पार्टी ने अपना यह नारा दिया तो ऐसा नहीं है कि उसने सिर्फ हिंदुओं का विकास किया। सबका विकास मतलब सबका विकास ।उसमें मुसलमान भी आते हैं। ईसाई भी आते हैं। अन्य धर्मावलंबी भी आते हैं । पिछले नौ वर्षों का मेरा अपना अनुभव यह रहा कि भाजपा की सरकार ने कोई भेद नहीं किया । भाजपा को लोग सांप्रदायिक पार्टी कहते हैं, दक्षिणपंथी कहते हैं लेकिन मैंने देखा है कि भाजपा के कार्यकाल में भी अनेक वामपंथी साहित्यकार तरह-तरह से लाभान्वित होते रहे हैं । गाय की बात करने वाले लेखक उपेक्षित रहे लेकिन भाजपा को गरियाने वाले लेखकों को भी सम्मान मिलता रहा । सरकार ऐसी होनी चाहिए जो समान रूप से सबका आदर करें। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर साहित्यकारों, कलाकारों का सम्मान होना चाहिए । वैसे सरकार तो सरकार होती है। लेकिन देखना यह चाहिए कि कौन-सी सरकार कम बुरी है। पूरी तरह से तो महान सरकारें तो अब संभव नहीं, लेकिन जिनमें कुछ ईमानदारी नजर आती है, जो दल एकतरफा काम नहीं करते, ऐसे दलों को महत्व मिलना चाहिए। इस दृष्टि से मुझे लगता है, हमारे मतदाताओं को जागरुक होकर अपने वोट का उपयोग करना चाहिए।