Home मेरी बात आइए, गाय को गले लगाएँ!

आइए, गाय को गले लगाएँ!

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भारत के पशुपालन बोर्ड ने 14 फरवरी को गाय को गले लगाओ दिवस (अंग्रेजी में कहें तो काऊ हग डे) मनाने की अपील की है। इस देश में कुत्तों के प्रति प्रेम बढऩे के कारण गायों की उपेक्षा हो रही है। हम अनेक चित्र ऐसे देखते हैं जिसमें लोग बड़े प्यार से अपने कुत्ते को गले लगा कर फोटो खिंचवाते हैं। कुत्ता उनके पूरे चेहरे को चाटता रहता है और लोग वीडियो बनवाते हैं। ऐसे लोगों से अगर हम कहें कि आपको गाय को गले लगाना है तो मुँह बनाने लगते हैं। समाज का यह परिवर्तन चौंकाने वाला है। भारत वह देश है, जहां सदियों से गोपालन होता रहा। भगवान कृष्ण और गाय के प्रेम की अनेक कथाएं हम जानते हैं ।लेकिन अब हालत यह हो गई है कि हमें अपील करनी पड़ती है कि गाय को गले लगाएँ।दुनिया में अनेक देश ऐसे हैं, जहां गायों को गले लगाया जाता है मगर हम गायों से दूर हो रहे हैं । अपने उपन्यास एक गाय की आत्मकथा में मैंने गोवंश की दुर्दशा का विस्तार से वर्णन किया है। उपन्यास में एक गाय कहती है,मैंने सुना है हर साल पॉंच सौ करोड़ रुपये का मॉंस बाहर भेजा जाता है। आजादी के बाद से अब तक अस्सी फ़ीसदी गौवंश नष्ट हो चुका है। अभी जो बचा है, उनसे चार पॉंच करोड़ टन दूध उत्पादित होता है। एक अरब टन गोबर मिलता है। देश में इस वक्त लगभग बीस करोड़ गाय-बैल हैं। दस करोड़ भैंसें हैं। सबसे बड़ी बात देश की साठ फ़ीसदी ऊर्जा पशुओं से ही मिलती है। आश्चर्य फिर भी आदमी हमें मार डालता है। देश जब आजाद हुआ था, तब देश में तीन सौ कत्लखाने थे, मगर आज छत्तीस हजार हैं। इतने तो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हैं। वाह, क्या प्रगति है। सवा सौ गुना। आज देश में प्रतिदिन चार लाख पशुओं को काटा जाता है। और गौवंश…? आँकड़े बताते हैं कि रोज पचास हजार काट दिये जाते हैं। हो सकता है, इससे भी कहीं ज्यादा हो। हमारा मॉंस विदेश भेजा जाता है। देस-परदेस हर कहीं लोग गौ मॉंस खा रहे हैं। सब कहते हैं कि गौ मॉंस बड़ा स्वादिष्ट होता है। इसी चक्कर में हम कटते जा रहे हैं। इसीलिए तो जनकवि सतीश उपाध्याय को गीत रचना पड़ रहा है-
मैं गाय हूॅं, मैं गाय हूॅं, मिटता हुआ अध्याय हूॅं
लोग कहते मॉं मगर, मैं तो बड़ी असहाय हूॅं
चाहिए सबको कमाई, बन गई दुनिया कसाई
खून मेरा मत बहाओ, मॉं को अपनी मत
लजाओ
बिन कन्हैया के धरा पर, भोगती अन्याय हूॅं
मैं गाय हूॅं, मैं गाय हूॅं।
गौ-हत्या-विरोधी-प्रदर्शन एक तमाशे जैसा भी हो गया है क्योंकि लोग गौ सेवा के नाम पर एक औपचारिकता निभाने चले जाते हैं। यही कारण है कि जिन दानवों के खिलाफ आंदोलन चल रहा है उन पर भी कुछ असर नहीं हो रहा। वे सरकारों, नेताओं और प्रशासन को चंदे दे-देकर निर्भीक-निर्लज्ज हो चुके हैं। तनावरहित हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। यह अजब-गजब लोकतांत्रिक देश है। लोग कहते हैं कि यहॉं लूटने वाले अक्सर मजे में रहते हैं और लुटने वालों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। आम आदमी भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है के झुनझुने के सहारे जीवन काट देता है। गाय का सवाल भी इसी भरोसे हल होने की प्रतीक्षा में है। फिर भी…गाय को पक्का यकीन है कि एक न एक दिन कोई ऐसी महान सरकार ज़रुर आएगी जो गाय को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करेगी….गौवध बंद होगा….भारत गौ राष्ट्र के रूप में पूरी दुनिया में पहचाना जाएगा।…..एक न एक दिन लोग हर तरह की जीव-हिंसा के सवाल पर सोचेंगे जरुर। ऐसा नहीं है कि गाय को बचाना है तो भैंसों की बलि देनी है। गौवंश बचे, सारा पशु-धन बचे…..एक न एक दिन पत्थर पिघलेगा…मन के किसी कोने में सुप्त-सी पड़ी करुणा जागेगी….अंतत: जीतेगी अहिंसा ही। यह खूबसूरत दुनिया अहिंसा के सहारे ही सुखमय और आधुनिक बन सकेगी।…..बस, इसी कल की प्रतीक्षा में गोपाल और श्री राम के देश की हम बे-चारी गाय अपना आज कुर्बान कर रही हैं। तमाम तरह की आधुनिकताओं के बावजूद हिंदुस्तान में करोड़ों लोग आज भी गाय को माता मानते हैं, उसकी पूजा करते हैं। गाय से जुड़ी अनेक कथाएं हम पढ़ते रहते हैं लेकिन अब गाय की बुरी दशा है। पढ़ा-लिखा एक वर्ग अब गर्व से कहता है कि हम गौ मांस खाते हैं । समय- समय की बात है। हो भी क्यों न! पहले भारत भारत था, अब इंडिया जो बन गया है। बावजूद इसके आज भी करोड़ों भारतवासी गौ सेवा में लगे हुए हैं । लेकिन इनमें से कुछ लोग बेमन से गाय की सेवा करते हैं । जब तक गाय दूध देती है, तब तक तो ठीक लेकिन जब वह बूढ़ी हो जाती है, तो उसे सड़कों पर छोड़ देते हैं। अपने माता-पिता को वृद्ध आश्रम भेज देते हैं। ऐसी छूटी गायों की दुर्दशा हम आए दिन देखते हैं । अनेक राज्यों में लावारिस गौवंश अब लंपी नामक चर्म रोग का शिकार होकर बेमौत मर रहा है। ऐसे समय में अगर कॉऊ हग डे मनाने की अपील की जाती है, तो यह बेहद सार्थक अपील है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 14 फरवरी को देश के कोने कोने में लोग गाय को गले लगाएंगे। बहुत हो चुका कुत्तों से प्रेम! अब यह देश गोवंश से प्रेम की ओर बढ़े। गाय से प्रेम का सिलसिला 14 फरवरी तक ही सीमित रहना नहीं रहना चाहिए। गाय हमारे जीवन में प्रतिदिन का अनिवार्य हिस्सा बने। जो लोग पाल सकते हैं , वे गौ पालन करें,तभी गाय बचेगी।
आओ, हम सब मिल कर के,
गऊओं को गले लगाएँ।
बहुत प्यार कुत्तों को बाँटा,
माँ को भी अपनाएँ।।